
सवाल करना और जहाँ आवश्यक हो वहां सरकार की आलोचना करना,,नीतिओं के ऊपर जमीनी हकीकत बताना जरूरी है,,वरना सत्ता बेलगाम होती चली जाती है,,
खैर इसे अंधभक्त अभी नहीं समझ सकते,उन्हें भक्ति की भंग चढ़ी है नयी नयी,मष्तिष्क नशे के गिरफ्त में है,इसलिये उनलोगों के कुतर्कों को दरकिनार करना भी जरूरी है…
ऐसी परिस्थिति भी उतपन्न हो जाती है कभी कभी जब किसी के मायावी चोले के पीछे का काला सच जनमानस को बाद में समझ आता है…संक्रमण काल मे है अभी राजनीति देश की जहाँ मृतप्राय विपक्ष ने इनके मनोबल बढ़ा रखें हैं पर इसी के बीच से हल भी निकलेगा…
टेलीप्रॉम्प्टर के पीछे से रचा मायाजाल सब खत्म होगा और सत्य देदीप्यमान होगा एकदिन…
लेकिन अभी के लिए डेमोक्रेसी की वह परिभाषा पर पूर्णतः यकीन कर लीजिए,,डेमोक्रेसी इज द गवर्नमेंट ऑफ फूल्स…यहाँ कोई भी कुछ भी बन जा सकता है,योग्यता हो या न हो…
नेता बनने के लिए कोई योग्यता जरूरी नहीं लोकतंत्र में…और ऐसे लोगो का जमावड़ा जुटकर फिर नीतियां निर्धारित करता है देश की समाज की…लोकतंत्र की यही सबसे बड़ी खामी भी है,जिसमे सुधार की जरूरत है!
– रंजन कुमार