ब्लडी डॉग कहीं का – Part 01

पसाकोलोजि भौजी ने सुबह सुबह ही जब फोन किया हमको तब हमारा दिल और दिमाग दोनों ही शंका से भर गया .. वह तभी इतनी सबेरे फोन करती हैं हमको ,जब उ फरोफ्रेसर से लड़ लेती हैं और कोई तिरिया चरित्र उनका काम नहीं करता !

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नम्बर ही देख के हम मन ही मन घबराने लगते हैं अब इतनी सुबह उनकी फोन से ..का पता आज का दिन कैसा गुजरे,क्या खबर सुना दें हमको .. उनके सबसे भरोसेमंद देवर हम ही हैं तो उनको नाराज भी नहीं करना चाहते हम इसलिए उनकी सब लटर पटर हमको सुनना ही पड़ता है ..!

फोन उठाये तो भौजी सुबक सुबक के रोने लगीं हेल्लो बोलते ही .. हमने पूछा “काहे ला रो रहीं हैं भौजी ..? पुनपुन के सब पानी लगता है सीधे आँखों में ही उतार लायी हैं का ए पुनपुन किनारे वाली ..!”

थोड़ी देर और सुबकने के बाद उनके बोल फूटे .. ‘देवर जी .. सब ठीक नहीं है .. आज फरोफ्रेसर हमको ..’ फिर रोने लगीं अब इतना बोल के तब हमने फिर ढांढस बधांया उनको ..! अब यह जानने से  पहले कि समस्या क्या हुआ है इ सत्ताईस  साल की पत्नी और इनके तेतालीस साल के पति के बीच मैंने उनको हंसाने का फैसला किया नहीं तो ठुनकते ठुनकते इ का का बोल देती हैं.. ऊ आधा से ज्यादा तो हमारे पल्ले ही नहीं पड़ता ! “तो आपके अडतालीस साल के बुढऊ हमारी सोलह साल की बुद्धिमान पसाकोलोजि को सम्भाल नहीं पा रहे हैं न ..?? जलते होंगे भौजी फरोफ्रेसर भैया आपकी बुद्धि से ..! ” पूछा हमने पसाकोलोजि भौजी से ..

“इ बात तो आप सही कह रहे हैं देवर जी .. बहुते जलन है हमसे इ बुढऊ भतार को हमरे .. और सब बात पर न .. पति नहीं .. बाप बने के कोशिश करते रहता है हमरा .. बियाह बाप बनावे ला किये थे क्या हम .. अरे पति हो पत्नी की तरह रखो हमको .. त उ नाहीं .. बाप बनके लगता है हर वक्त हुक्म चलावे .. जैसे हमको कुछ आता ही न हो .. और वही सब जानता हो .. आउट डेटेड बुढऊ खुद को बहुते समझदार समझता है देवर जी, तो फिर हमको भी लहर तलवा के कपार पर चढ़ जाता है सीधे ..!” पसाकोलोजि भौजी बोलीं .. अब उनका कपसना बंद हो गया था और मेरा तीर शायद निशाने पर लगा था ..

एक स्त्री को खुश करना हो तो कहिये तारीफ़ में फिर थोड़ा सलीकेदार लहजे में ,वह अपनी वास्तविक उम्र से भी बहुत कम की लगती है .. बड़ा ही कामयाब नुस्खा है जनाब स्त्री को खुश करने का .. अब किसी को बता मत दीजियेगा यह .. अपने तक ही रखियेगा इसको मित्रो ..और आजमाइश कीजियेगा जब कभी जरूरत पड़े किसी गमजदा स्त्री को खुश करने और हंसाने के लिए .. इसके शुभ और सभी अशुभ परिणाम  की जिम्मेदारी खुद आपकी होगी मेरी नहीं .. हमारी पसाकोलोजि भौजी तो खूब खुश होती हैं इससे हाँ …!

बोली फिर से पसाकोलोजि भौजी हमको .. “लेकिन हाँ देवर जी .. आप हमको सोलह साल के और फरोफ्रेसर के अडतालीस साल के काहे बताएं आज .. हमर उमर कम हो गया और उसका ज्यादा बढ़ गया .. मजाक खूब करते रहते हैं आप ..हमारी विपत्त में भी हमसे चुहल कर रहे हैं आप .. रोमांटिक देवर इसलिए ही न हम आपका नाम धरी हूँ .. बहुते नटखट हैं आप .. ऐसन रोमांटिक रोमांटिक बात कबहूँ फरोफ्रेसर नहीं किया हमसे देवर जी .. कान तरस के रह गये हमरा .. नाश्ता दो .. खाना दे दो .. ब्रश दे दो .. पेस्ट दे दो .. तौलिया दो , पाजामी दो .. तुमको यह नही आता .. तुम बेलूर हो .. तुम जाहिल हो .. गंवार कहीं की .. दिनभर में यही सब सुनते रहते हैं हम उससे .. और रात को आयेगा .. छाती पर लैपटॉप खोले खुसर फुसर उसी में करता रहेगा और मुंह बिदोरे लैपटॉप को सीने से लगाये सो जाएगा .. हमको तो समझ ही नहीं आता .. बियाह इसीलिये होता है क्या .. बीबी नहीं उसको तो काम वाली बाई चाहिए थी जी .. भौकाल मर्द .. कबहूँ नहीं कहता की थोड़ा प्यार लो हमसे .. थोड़ा प्यार दो हमको .. पांच साल हुए बियाह के, कबहूँ नाहीं जाने की रोमांस भी कुछ होता है जीवन में .. ऐसन बकलोल मरद से पाला पड़ा है हमरा .. और हमरी छोटी बहन जब आ जाए तब देखिये इस मुझौंसे को .. तब इसके पोर पोर से रोमांस छलकता मिलेगा दिन रात .. किधर उठाऊं किधर बिठाऊं करते चलेगा .. आप ही समझ सकते हैं देवर जी हमारा कष्ट .. आप देवर भी हैं हमारे और एगो बहुते बड़ा काउंसलर भी .. आप से ही न दुःख कह के मन हल्का करते हैं हम .. हमरो सरधा ही रह गया देवर जी .. आपकी तरह बोलने बतियाने वाला एक रोमांटिक मरद मिलता हमको भी .. इ! सब काम एगो लेखक ही कर सकता है ..देखिये चट से हमारी उमर आप सोलह साल की कर दिए सताईस साल से .. और हम भी चट से सोलह साल की कमसिन बन गये सब भूल के अपना तकलीफ .. शब्द में कितना मलहम है देवर जी .. घाव सब भर जाता है ..!”

भौजी अब खूब खुश हो गयीं थीं और हमको लगा कि तीर हमरा निशाने पर लग गया है .. “भौजी हम नहीं चाहते की आपकी आँखों का काजल आंसुओं की धार में बह जाए और कमल के फ़ूल जैसी बड़ी बड़ी कजरारी सुंदर आँखें आपकी कुम्हला जाएं .. इसलिए आपको न उम्र गिनने की यह नयी गणना से आपकी और फरोफ्रेसर की उम्र बताएं हम हाँ ..”

पसाकोलोजि भौजी की आँखें भेंगी हैं एक इधर देखती हैं तो दूसरी उधर .. मगर कमल जैसी आँखें कह के तो हमने एकदम से उनको खुश कर दिया और शीशे में उतार लिया .. मगर एक गड़बड़ भी हो गयी .. हम चाहते है इन दोनों के काउंसलर होने के कारण कि ये दोनों ठीक से दाम्पत्य जीवन गुजारें बिना लडे  झगड़े .. मगर अब तो कभी भी फरोफ्रेसर इनको रोमांटिक लग ही नहीं सकता .. यह सब फरोफ्रोसर के वश की तो बात ही नहीं .. कितना भी कोशिश कर ले .. बेचारा बुड्ढा पति .. मुझे तो अब अल्पना मिश्रा जी के उपन्यास “उसे बुड्ढा मिल गया” की वह कहानी याद आने लगी .. लगा जैसे सभी चरित्र कहानी के वैसे ही उतर आये हैं यहाँ  मेरे सामने इस काउंसलिंग के केस में .. जिन्दगी  में भी कैसे कैसे संयोग घटते रहते हैं ..!पसाकोलोजि भौजी को समझाया हमने .. “उ का है की आप बियाह के बाद हर साल एक एक साल कम की होती जा रही हैं तो आप सोलहवें में पहुंच गयीं .. और फरोफ्रेसर इतनी समझदार पसाकोलोजि भौजी जैसी बुद्धिमान सुंदर और जवान बीबी को कैसे सम्भालें इस फ़िक्र में जल्दी जल्दी बूढा हो रहा है और एक साल में दो दो साल उसकी उमर बढ़ रही है .. इसलिए आप सोलह की अब और वह आपके फरोफ्रेसर बुढऊ अडतालीस के हुए ..!”

‘अरे बाप रे बाप हँस हँस के पेट फूल गया देवर जी .. ” बोली पसाकोलोजि भौजी हमसे .. “आपका भी गजब हिसाब है .. और हमारी दूसरी बहन कितने की हुयी आपके इस फार्मूला से जो मेरी शादी के वक्त इक्कीस की थी ..”

“मैं हिसाब लगाता हूँ आप कुछ देर जोड़ने दीजिये तो .. कहके मैंने उन्हें बताया .. वह इकतीस साल की हुयी क्योंकि आपकी शादी के पांच साल  हो गये हैं ..”

“वह कैसे जरा समझाइये तो ..” हंसते हुए पूछी पसाकोलोजि भौजी मुझसे ..

“वह ऐसे भौजी कि हर साल उस बेचारी के शादी होने का शोर करते हैं जुआरी पप्पा आपके और फिर उस बेचारी के शादी को लेकर देखे गये उसके सब सपने सब मिलके हर साल पिछले 5 साल से तोड़  रहे हैं .. तो वह अपने उम्र से हर साल एक साल ज्यादा बड़ी होती जा रही है बेचारी .. अब तो बेचारी के गालों पर झुर्रियां भी पड़ने लग गयीं हैं शादी से पहले ही .. गौर से देखिएगा जरा हाँ .. और किसी को भी आपके घर में उसकी फ़िक्र नहीं है .. आपके जुआरी पप्पा तो अभी भी आपके भाई को दुनिया में लाने के कार्यक्रम में व्यस्त हैं ..दामाद खोजने की फ़िक्र कहां है किसी को ..??”

“ए देवर जी अभी आप हमारा प्रॉब्लम निपटाइए पहले .. बात तो आप सही कह रहे हैं परन्तु जब हम शान्ति से रहेंगे तब न उसका भी सोचेंगे .. और पप्प्पा तो हमरे जैसन हैं सब जानते ही हैं .. वही अच्छे रहते निकम्मा निठल्ला और पकिया जुआरी नहीं होते  तो हमरा बिआह क्यों होती इस बूढ़े  से .. एक समझदार बाप कभी थोड़े ही न बियाह कर देगा इस तरह की बेमेल जोड़ी में ..?? पहले हमरा आज की समस्या निपटाइए .. हमको फरोफ्रेसर आज ब्लडी बीच कह के गया है डयूटी .. तलवा के लहर हमरा कपार पर चढल है तबसे .. उसी के कारण न रो रहे थे जब फोन किये आपको ..”

“ब्लडी बीच काहे बोला भौजी आपको ..कोई कारण भी बताया कि ..” हमने पूछा पसाकोलोजि भौजी से ..!!

क्रमशः Part – 02 में कहानी जारी .. शेष अगले दिन वेबसाईट पर ..पढ़ते रहिये उपन्यास #पसाकोलोजि_भौजी  & #फरोफ्रेसर_पुराण  

 
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Ranjan Kumar
Ranjan Kumar

Founder and CEO of AR Group Of Institutions. Editor – in – Chief of Pallav Sahitya Prasar Kendra and Ender Portal. Motivational Speaker & Healing Counsellor ( Saved more than 120 lives, who lost their faith in life after a suicide attempt ). Author, Poet, Editor & freelance writer. Published Books : a ) Anugunj – Sanklit Pratinidhi Kavitayen b ) Ek Aasmaan Mera Bhi. Having depth knowledge of the Indian Constitution and Indian Democracy.For his passion, present research work continued on Re-birth & Regression therapy ( Punar-Janam ki jatil Sankalpanayen aur Manovigyan ).
Passionate Astrologer – limited Work but famous for accurate predictions.

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