बीजेपी की मजबूरी हो सकती है ढोना लेकिन देश की मजबूरी नहीं हो सकती

बहुत सारी समस्याएं देश में इसलिए पैदा हो गई क्योंकि एक ऐसे अयोग्य नेतृत्व को बीजेपी ने देशपर 9 सालों से थोप दिया है जो अपनी बात भी खुद नहीं कह सकते उसके लिए भी पीछे से एक ऑपरेटर और सामने से टेलीप्रॉम्पटर की जरूरत पड़ती है…वो योगी और फकीर इतने बड़े हैं कि ध्यान करते समय भी उनको एक पवित्र गुफा में जाने पर कैमरामैन चाहिए,ध्यान करने की तस्वीरें आनी चाहिए…जो दिनभर में जाने कितनी बार अपने परिधान बदलते हैं…

ऐसा नेतृत्व बीजेपी की मजबूरी हो सकती है ढोना लेकिन देश की मजबूरी नहीं हो सकती ऐसे बीजेपी के एक नेता को दस साल बाद भी ढोना जिसने काला धन मंहगाई बेरोजगारी…हर साल 2 करोड़ रोजगार,2022 तक कोई बेघर नहीं होगा किसानों की आय दुगनी तिगनी जाने कितनी गुनी कर देने की बात की थी..सबके खाते में काले धन से 15 लाख वगैरह वगैरह …पर अफसोस सब जुमले थे जुमलों का क्या…

तो दस साल के बाद अवसर आनेवाला है,बीजेपी फिर अगर ऐसे ही नेता के नेतृत्व में उतरती है आगे चुनाव में भी तो बीजेपी का विकल्प है फिर अभी एकीकृत विपक्ष …

बीजेपी के पास वैसे अवसर है अभी जब बीजेपी अपने नेतृत्व को बदले और पीएम उम्मीदवार अपना बदल दे और जो एक असली योगी बीजेपी में है उनको यूपी के बाद अब राष्ट्र की कमान बीजेपी सौंप दे…और अपनी भूल का सुधार करे …

वैसे भी लोकतंत्र में हर 5 साल में अगर जनता सरकार बदल दे तो लाभ में रहेगी क्योंकि सत्ता के केंद्र में जब कोई व्यक्ति या दल ज्यादा लंबे समय तक रहे तो उसे ईश्वर होने का गुमान हो ही जाता है और इनको तो इनके वाले सुरों के भी नेता कहने लग गए हैं चापलूसी में …

सुरों के नेता को अब विश्राम दिया जाए वो समय आ गया है…जबसे वो सुरों के नेता घोषित हुए मेरी श्रद्धा खत्म हो गई क्योंकि कोई भी इंसान जिसका जीवन पर्याप्त विसंगतियों और तमाम विरोधाभासों से भरा हुआ हो वह मेरे भगवान के बराबर का दर्जा प्राप्त नहीं कर सकता क्योंकि एक तथ्य मेरे शास्त्रों ने बड़ा स्पष्ट बताया है कि धरती पर जिसने भी खुद को सुरों का नेता घोषित किया है वह बहुत बड़ा असुर प्रमाणित हुआ है बाद में…तमाम असुरों को सुर होने का ही प्रचुर अभिमान रहा है यह हर जगह शास्त्रों में वर्णित है…तो वक्त की नब्ज पहचानिए….

मेरा काम है जो सत्य दिखे लिखते जाना..कहीं न कहीं से कोई किरण भी फूटेगी जरूर जो फैले अंधियारे को दूर करेगी…एतबार है…

थोथे राष्ट्रवाद से देश नहीं चलता,राष्ट्र सीने में धड़कता है जिनके उनको राष्ट्र धर्म निभाने के लिए किसी भी तरह से सत्ता हासिल हो जाए अपने दल के सारे नीति सिद्धांतों की बलि देकर उसकी जरूरत नहीं पड़ती…अटल जी इसके जीवंत उदाहरण रहे हैं जिनकी सरकार 1 सांसद कम होने की वजह से गिर गई थी पर उन्होंने उसे बचाने के लिए ईडी सीबीआई के माध्यम से कोई साजिश नहीं रची थी…बीजेपी भले ही वही है पर आज बीजेपी का नेतृत्व बहुत नीचे गिरते हुए पतन की हर सीमा के पार चला गया ये दुर्भाग्य है…!

एक कवि ने लिखा था तेरा वैभव अमर रहे मां हम दिन चार रहें न रहें…यह इस देश के राष्ट्रवाद की संजीवनी शक्ति है …जय हिंद जय भारत !

About The Author

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top