महामृत्युंजय मन्त्र अर्थ और सामान्य व्याख्या शिवपुराण – Ranjan Kumar

Shiva

महामृत्युंजय मन्त्र इस प्रकार है – “ त्रयम्बकं यजामहे सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं,उर्वारुकमिव बंधनान्मृयो  – मुर्क्षीयमामृतात !”

आइये अब इसका सामान्य अर्थ और सामान्य व्याख्या इस मन्त्र की करते हैं जिससे इस मन्त्र को सरल शब्दों में समझा जा सके कि इसमें कहा क्या गया है जिससे आप इसके भाव को हृदयस्थ कर सकें ! अगली कड़ी में इसके हम आपको इस मंत्र का महामात्य और इसके चमत्कारिक प्रभाव को बतायेंगे अपने दूसरे ब्लॉग पोस्ट में !


त्रयम्बकं यजामहे ‘ – हम भगवान् त्रयम्बकका यजन ( आराधन ) करते हैं ! त्रयम्बक का अर्थ है – तीनों लोकों के पिता प्रभावशाली शिव ! वे भगवान् सूर्य, सोम और अग्नि – तीनों मंडलों के पिता हैं ! सत्त्व, रज और तम – तीनों गुणों के महेश्वर हैं !

आत्मतत्व, विद्यातत्व, और शिवतत्व – इन तीन तत्वों के; आहवनीय, गार्हपत्य और दक्षिणाग्नि – इन तीनों अग्नियों के; सर्वत्र उपलब्ध होनेवाले पृथ्वी, जल एवं तेज – इन तीनों मूर्त भूतों के ( अथवा सात्विक आदि भेद से त्रिविध भूतों के ), त्रिदिव ( स्वर्ग ) – के, त्रिभुज के, त्रिधाभूत सबके ब्रम्हा, विष्णु और शिव – तीनों देवताओं के महान इश्वर महादेव जी हीं हैं ! ( यहाँ तक मंत्र के प्रथम चरण की व्याख्या हुई ! )

मंत्र का द्वितीय चरण है – ‘ सुगन्धिं पुष्टिवर्धनं ’ – जैसे फूलों में उत्तम गंध होती है, उस्सी प्रकार से भगवान् शिव संपूर्ण भूतों में, तीनों गुणों में, समस्त कृत्यों में, इन्द्रियों में अन्यान्य देवों में और गणों में उनके प्रकाशक सारभूत आत्मा के रूप में व्याप्त हैं, अतएव सुगन्धयुक्त एवं संपूर्ण देवताओं के इश्वर हैं !
यहाँ तक ‘सुगन्धिं पद की व्याख्या हुई ! अब ‘ पुष्टिवर्धनं ’ की व्याख्या करते हैं !
उत्तम व्रतका पालन करने वाला द्विजश्रेष्ठ ! महामुने नारद ! उन अन्तर्यामी पुरुष शिवसे प्रकृति का पोषण होता है – मह्त्त्रव्त्से लेकर विशेष – पर्यंत संपूर्ण विकल्पों की पुष्टि होती है तथा मुझ ब्रम्हाका, विष्णुका मुनियोंका और इन्द्रियोंसहित देवताओंका भी पोषण होता है , इसलिए वे ही ‘ पुष्टिवर्धन ’ हैं !
अब मन्त्रके तीसरे और चौथे चरण की व्याख्या करते हैं ! उन दोनों चरणों का स्वरुप यों है – ‘उर्वारुकमिव बंधनान्मृयो  – मुर्क्षीयमामृतात’ – अर्थात ‘ प्रभो! जैसे खरबूजा पक जानेपर लताबंधनसे छूट जाता है, उसी तरह मैं मृत्युरूप बंधन से मुक्त हो जाऊं, अमृतपद ( मोक्ष  ) – से पृथक न होऊं!’
वे रुद्रदेव अमृतस्वरूप हैं; जो पुण्यकर्मेसे, तपस्या से, स्वध्याय्से, योगसे अथवा धयान से उनकी आराधना करता है, उसे नूतन जीवन प्राप्त होता है ! इस सत्यके प्रभावसे भगवान् शिव स्वयं हीं अपने भक्तोको मृत्यु के सूक्ष्म बंधन से मुक्त कर देते हैं; क्योंकि वे भगवान हीं बंधन और मोक्ष देने वाले हैं – ठीक उसी तरह, जैसे ‘ उर्वारुक अर्थात ककड़ी का पौधा अपने फलों को स्वयं ही लता के बंधन में बांधे रखता है और पक जाने पर स्वयं ही उसे बंधन से मुक्त कर देता है !
 
यह मृतसंजीवनी मंत्र है, जो सर्वोत्तम है ! प्रेमपूर्वक नियमसे भगवान् शिवका स्मरण करते हुए एस मंत्र का जप करना चाहिए !
जप और हवन के पश्चात् इस मन्त्र से अभिमंत्रित किये हुए जलको दिन और रात में पीना चाहिए तथा शिव – विग्रह के समीप बैठकर उन्ही का धयान करते रहने से मृत्यु-तुल्य सब कष्ट खत्म होते हैं ! इस से कहीं भी मृत्यु का भय नहीं रहता ! यह सब करके शांतभाव से बैठकर भक्तवत्सल शिव शंकर का ध्यान करना चाहिए !
 
शिवपुराण से संकलित ,
संकलन – रंजन कुमार
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Ranjan Kumar
Ranjan Kumar

Founder and CEO of AR Group Of Institutions. Editor – in – Chief of Pallav Sahitya Prasar Kendra and Ender Portal. Motivational Speaker & Healing Counsellor ( Saved more than 120 lives, who lost their faith in life after a suicide attempt ). Author, Poet, Editor & freelance writer. Published Books : a ) Anugunj – Sanklit Pratinidhi Kavitayen b ) Ek Aasmaan Mera Bhi. Having depth knowledge of the Indian Constitution and Indian Democracy.For his passion, present research work continued on Re-birth & Regression therapy ( Punar-Janam ki jatil Sankalpanayen aur Manovigyan ).
Passionate Astrologer – limited Work but famous for accurate predictions.

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