ये कतरा कतरा जीवन
जो भी जिया उन्हें
सार्वजानिक कर दूँ ?
कम से कम उन हिस्सों
को जिनमें तुम थे
तेरी बातें थीं ..
कुछ मौन से वादे थे
सपने और उन्हें पूरा करने
के कुछ इरादे भी ..
मेरा क्या है सब कुछ तो
इसी धुंध का हिस्सा है
जिसमे कभी मैं हूँ
कभी तुम और कभी
कुछ भी नहीं !!
– रंजन कुमार