सुबह सुबह
ओस की बूंदों पर
अब भी मै
कभी कभी ,
नंगे पाँव चलता हूँ ..!
महसूसता हूँ तुम्हें ..
तुम कहती थी ,
इससे ..
आँखों की रौशनी
खूब बढ़ती है ..!
देखकर बताओ मीत ..
मेरी आँखों में ,
बाकी है या नहीं ..
जो तुमने भरे थे सब ..!
सच के रंग
और न्याय की प्यास ..
प्रकृति का उल्लास
और करुणा की बूंदें .
सब सहेज कर रखा है,
अभी तक मैंने ..!
तुम तो देख सकती हो
अब हजार आँखों से ,
कण कण से,
तेरी खुश्बू से महमहाती
यादों की बगिया
अभी तक है मेरी ..!
थाम लेना हाथ ,
जो लडखडाऊँ कभी ..
बनके अहसास मेरा ..
मोहब्बत बिखेरे रखना
हर जगह अपनी ..!
तुम अहसास हो ,
जीवन में जीवन का ..
उल्लास हो,आभास हो,
साँसों के उपवन का ..
गीत हो सरगम हो
मधुमास हो जीवन का ..!
गीत में , संगीत में ,
और गहन प्रीत में
हर जगह तुम समाये हो !
कह जाते हो अब भी,
बेशुमार इश्क तो तुम्हें
अब भी है मुझसे !!
– रंजन कुमार