Hindi poetry on present era of politics : तुम किधर हो इस लड़ाई में – Ranjan Kumar

राजनीति का विद्रूप चेहरा ,और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबीव्यवस्था … कर…
राजनीति का विद्रूप चेहरा ,और आकंठ भ्रष्टाचार में डूबीव्यवस्था … कर…
घर लौट चल पंछी बसेरे में हुयी अब शाम सूरज डूबता है…
इस पार और उस पार के बीच एक सेतू था…
शब्दों मे कहाँ समाती है तेरी याद ?…
लघुकथा.. इधर से कोई गधा तो नही गुजरा इधर…
उजाला बाँटता सूरज अँधेरे में भी डूब सकता है…
‘रस्मी बातों में कुछ नहीं रखा तू इनमे ये…
अपना मुस्तकबिल तो रख दिया था तुम्हारी देहरी पर…
जब निकम्मों का हुक्म हुनर वालों को मानने पर …