Hindi poetry : यही किस्मत है दीप की – Ranjan Kumar

जलता रहा मैं रात भर चिराग बन बन के,अंधेरों में पल पल हरपल सहर होने तक बस तुझको राह दिखलाने के लिए ! अब जब सुबह की आभा फूट रही है देखो दूर वातायन में .. बुझा ही तो दोगे तुम मुझे…
जलता रहा मैं रात भर चिराग बन बन के,अंधेरों में पल पल हरपल सहर होने तक बस तुझको राह दिखलाने के लिए ! अब जब सुबह की आभा फूट रही है देखो दूर वातायन में .. बुझा ही तो दोगे तुम मुझे…
तुझे नंगा सच पसंद नहीं , और मुझे … रेशमी जुमलों में लिपटा झूठ ! छोड़ो यार.. ये रोज रोज का ताना बाना , इस दोस्ती की बुनियाद बहुत जर्जर है , अब विपरीत दिशा में अपनी मंजिलें तलाशते हैं…