Hindi Poetry : ठंढ से ठिठुरते गोरैये याद आते हैं – Ranjan Kumar

जब दरख्तों पर कभी खडखडाहट होती है , फिर क्यों ठंढ से ठिठुरते गोरैये याद आते हैं .. याद आती हैं वो झुग्गियाँ भी , और फिर . अनगिनत बेबस आँखे सहमे सहमे से क्यों …? बमुश्किल ही मनुष्य कहे…
जब दरख्तों पर कभी खडखडाहट होती है , फिर क्यों ठंढ से ठिठुरते गोरैये याद आते हैं .. याद आती हैं वो झुग्गियाँ भी , और फिर . अनगिनत बेबस आँखे सहमे सहमे से क्यों …? बमुश्किल ही मनुष्य कहे…
ये प्यार मोहब्बत धोखा है, इस धोखे से मैं डरता हूँ ! सच कहूँ , इसी उलझन के कारण दूर ही अक्सर रहता हूँ !! नहीं चाहता बनना टिशु पेपर उपयोग करो और निपटा दो ! कुछ…