सफ़र वह अलहदा ही होता है
जब रास्ते रास्तों से ही सब सवाल करें , और मुसाफिर बेपरवाह हो गुजर जाये ! सफ़र वह अलहदा ही होता है, राह चलती है , मंजिलें क़दमों में बिछी जाती हैं, मुसाफिर बहुत दूर, बहुत आगे निकल जाता है…
जब रास्ते रास्तों से ही सब सवाल करें , और मुसाफिर बेपरवाह हो गुजर जाये ! सफ़र वह अलहदा ही होता है, राह चलती है , मंजिलें क़दमों में बिछी जाती हैं, मुसाफिर बहुत दूर, बहुत आगे निकल जाता है…
सुबह सुबह ओस की बूंदों पर अब भी मै कभी कभी , नंगे पाँव चलता हूँ ..! महसूसता हूँ तुम्हें .. तुम कहती थी , इससे .. आँखों की रौशनी खूब बढ़ती है ..! देखकर बताओ मीत .. मेरी आँखों…