नजरिया ही ले जाता है हमे आनंद से परमानंद तक
जैसे ही देखने समझने का हमारा नजरिया बदलता है सब नजारे बदल जाते हैं फिर .. और उसकी तो रीत ही यही है जो जिस भाव से उसे भजता है वह उसे उसी रूप मे मिल भी जाता है! स्थूल…
जैसे ही देखने समझने का हमारा नजरिया बदलता है सब नजारे बदल जाते हैं फिर .. और उसकी तो रीत ही यही है जो जिस भाव से उसे भजता है वह उसे उसी रूप मे मिल भी जाता है! स्थूल…
मेरे प्रकाशित काव्य संकलन अनुगूँज पुस्तक मे संकलित प्रस्तुत है ये रचना .. राम को वनवास दे ही दिया जब तो नियति है फिर यही दशरथ की मरो पुत्र वियोग में रोवो तड़पो चीत्कार करो! सुकून की साँस मिल नहीं सकती …