Category Poetry

फिर से कसम है जानेमन पत्ता गोभी कभी नही खाऊंगा

cabbage

बिछड़ के उससे हमने सोचा कुछ त्याग करूँ मोहब्बत भरे जज्बातों से जुदाई में उसके घायल हूँ इसका कुछ न कुछ तो इजहार करूँ ! उसे पत्ता गोभी नही भाती थी,मैं खूब चबाता था देख ले तो उल्टियाँ आती थी…