Hindi sad poetry : अब तुम इधर के नहीं और मैं उधर का नहीं – Ranjan Kumar

इस पार और उस पार के बीच एक सेतू था तेरा जिस्म , जहाँ संवाद मुमकिन था ! कैसे करूँ कोई संवाद ? अब तुम इधर के नहीं और मैं उधर का नहीं !! – रंजन कुमार
इस पार और उस पार के बीच एक सेतू था तेरा जिस्म , जहाँ संवाद मुमकिन था ! कैसे करूँ कोई संवाद ? अब तुम इधर के नहीं और मैं उधर का नहीं !! – रंजन कुमार
शब्दों मे कहाँ समाती है तेरी याद ? मैं एक झरोखे मे निहारता हूँ , तू दूसरी खिड़की में खिलखिलाती है ! इस शहर के हर कोने मे बिखरा है … तुम्हारा अक्स , वेदना से थरथराते लबों की …