Part 1 – बड़ा बाबू – Introduction – उपन्यास की भूमिका
वैसे तो वो पोस्ट ऑफिस का एक मामूली सा किरानी ही था लेकिन बड़ा बाबू कहलवाना ज्यादा पसंद करता था वह .. वैसे वह खुद भी कहा करता है कि जब सौ हरामी मरते हैं तब कहीं जाकर कोई एक…
वैसे तो वो पोस्ट ऑफिस का एक मामूली सा किरानी ही था लेकिन बड़ा बाबू कहलवाना ज्यादा पसंद करता था वह .. वैसे वह खुद भी कहा करता है कि जब सौ हरामी मरते हैं तब कहीं जाकर कोई एक…
मेरे प्रकाशित काव्य संकलन अनुगूँज संकलित प्रतिनिधि कविताएँ से संकलित ” उधेड़बुन जारी है ” – चश्मे के अंदर से घूरती उसकी दो दो आँखे, अपलक लगातार ..! मैं असहज होता हूँ अंदर मन मे, नाराज होता हूँ पर वह …
जिन्दगी में बच सको तो सिर्फ बचो,अफ़सोस करने से ..छीन लेता है चैन और सुकूनअफ़सोस ही अक्सर ! आधी जिन्दगी गुजरती है अफ़सोस करने में , और आधी गुजरी उन कर्मों में जिसपे अफ़सोस है अब ! मुकम्मल जिन्दगी हो जाये अगर…
जीवन की रक्षा हेतू पल पल का प्रयास और मृत्यु भी पल पल अपने आगोश में लेने को आतुर, भिन्न भिन्न रूप बनाकर .. कब कहाँ कैसे ख़त्म हो जाये ये सफ़र मालूम नहीं .. फिर सब धरा रह जाता…
वह फिर चला गया फेंक कर सारा दिन उजाला अपना , मेरे खुद के अंधेरों ने उसे फिर से नजरअंदाज किया ! कुछ तो कह रहा था वह मुझे डूबते वक़्त भी धीमे धीमे , मेरे गुमान के शोर में…
तमाम उम्र बड़े सख्त इन्तेहाँ से गुजरता रहा वो चराग , जो आँधियों से जख्मी था , फिर बरसात से गुजरता रहा ! – Vvk —————– Copyright —————–
उनसे कहो सिर्फ दर्द – दर्द न करें , बल्कि अपना रोना सब मिलकर रो लें ! एक उम्र है मेरे साथ तजर्बे की , मैंने जख्म को हीं मरहम होते देखा है !! – Vvk
आँधियाँ बुझा गयीं , चराग जो .. अफसोस उनपे भी करके अब हासिल क्या ? कि चलो अब साहिल के , खौफ से .. डूबती किश्तियों को बचाते हैं !! – Vvk
अस्तित्व नहीं कुछ भी , बहारों का, नजारों का , इन फूलों पत्थरों और पहाड़ों का ! अगर तुम नहीं शामिल, इन बहारों में , नजारों में, और इस जिन्दगी के, किनारों में !! – रंजन कुमार
क्या रास्ता है, रहगुजर क्या , पूछ लूँ रब से जरा ! कौन गुजरा, कब यहाँ से, ले लूँ पता उसका ज़रा !! जरा जान लूँ पहचान लूँ, हैं दुश्वारियां क्या राह में ! कौन निकला पार इसके, और कौन…